जितना माया के फेर में पड़ोंगे, उतना ही कष्ट भोगना पड़ेगा- भागवत भूषण पं. आशुतोष शास्त्री

  • माया के बंधन से मुक्त होना है तो परमात्मा की भक्ति करों
  • तारा है सारा जमाना, श्याम हमको भी तारो...भजन की प्रस्तुति पर झूम उठे श्रद्धालु



देवास। जितने माया के फेर में पड़ोंगे उतना ही कष्ट भोगना पड़ेगा, इसलिए माया के बंधन से मुक्त होना है तो परमात्मा की भक्ति करों। सोने का हार,, कानों में जो कुंडल है, पैरों में मोटे-मोटे पायजेब हैं, यह सब हमारे साथ नहीं जाएंगे। अंत समय में सब निकाल लेते हैं। जैसा संसार में आया उसे वैसा ही विदा करना है तो आप इस माया के बंधन में क्यों पड़े हुए हो।



यह विचार मेंढकीचक शिव मंदिर परिसर तालाब क्षेत्र में महिला मंडल द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा में भागवत भूषण पं. आशुतोष शास्त्री ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि माया दिखाई नहीं देती है। हम इस संसार में, मकान में, गाड़ी-बंगले, परिवार, रिश्तेदारों में मोह लगाए बैठे हैं। कहते हैं स्वयं का दुख स्वयं ही भोगना पड़ता है। भगवान ने मनुष्य जन्म दिया है, क्योंकि हमने अच्छे कर्म किए थे, इसलिए इसे व्यर्थ मत गंवाओं। इस देह को साधन प्राप्त कर शरीर में बैठी, जो आत्मा है वह शरीर का संचालन करती है और मन संसार में भटकाता है, इसलिए आत्मा के कल्याण के लिए देह को माध्यम बना कर इस चंचल मन पर अंकुश लगाए। मन बड़ा मतवाला है। वह कहीं ओर ले जाता है। हमें भटका देता है।



उन्होंने कहा कि सन्मार्ग से हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। आप इस सन्मार्ग पर चलिए। मनमर्जी से यदि कोई मार्ग बनाएंगे तो कष्ट प्राप्त होगा। भगवान की छत्रछाया में हमारा पालन-पोषण हो रहा है। कथा को माध्यम बनाकर हमें इस बात से सीख लेना पड़ेगी, पाप नहीं कमाना है एवं पुण्य संग्रहण करना है।

इस दौरान पं. शास्त्री ने ना सोना काम आएगा ना चांदी काम आएगी, तारा है सारा जमाना श्याम हमको भी तारो... जैसे भजनों की सुमधुर प्रस्तुति दी तो श्रद्धालु झूम उठे। धर्मप्रेमियों ने पं. शास्त्री का महाकाल का दुपट्टा, शाल-श्रीफल से सम्मान किया। महिला मंडल एवं अतिथियों ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती की। सैकड़ों धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।

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